कुछ रिश्ते
कुछ रिश्तों का बोझ उठाना पड़ता हैं
अपनों के सामने अपना ग़म छुपाना पड़ता हैं
अपना,पराया महज़ एक खेल हैं माया का
ना चाहकर भी कुछ रिश्ते निभाना पड़ता हैं।।
जिन रिश्तों के होने से, ना होने से फर्क नहीं पड़ता
उन रिश्तों को भी लोकाचार से बचाकर रखना पड़ता हैं
जिस रिश्ते से ऊब हो जाती हैं उन्हें भी निगलना पड़ता हैं
सिर्फ अपनी इज्जत के लिए ज़हर भी पीना पड़ता हैं।।
जो वक्त पे साथ नहीं देता,उन रिश्तों को भी अपना कहना पड़ता हैं
कभी-कभी खुद के लिए चेहरे पे झूठी मुस्कान भरना पड़ता हैं।।
एक होकर भी कई रिश्तों में विभक्त होना पड़ता हैं
औरों से कोई क्या कहें,बस अपनी दामन बचाना पड़ता हैं ।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान -बिहार