कुछ राहें ऐसी भी …
कच्चे – पक्के रास्तों पर
दौड़े चले आते हैं l
तलवे घिसे हुए है बच्ची के
फिर भी मिलो चल जाते हैं l
फटे-पुराने कपड़े गाथा अपनी गाते हैं
कि शौक नहीं है उसके ज़्यादा …. मगर
कुछ एक आधे ही पूरे हो पाते हैं l
मैंने देखा है एक ख्वाइश को उमड़ते हुए
झूठे अन्न की ओर,
नन्हें कदम बढ़ते हुए l
मासूम क्या खुशी तूने पाई ,
चार अन्न के दानों पर,
कैसे जीत ली प्रिय तुमने भुकमरी की लड़ाई l