कुछ यूं मनाओ तुम हर बार दीवाली
बाहर रौशनी तो सभी करते हैं, जिसने है भीतर जोत जगा ली ।
उसी को मिला है ज्ञान प्रकाश , उसी की सच्चे अर्थों में दीवाली ।
इधर धुआं-उधर धुआं , फैलाकर हर ओर जहर की आंधी ।
देकर पर्यावरण को जहर का प्याला , हर पल कहते वाह जी -वाह जी ।
पल भर में ठा-ठा करके , खुद लेते हैं आनंद
पैसे को हवा में जलता देख , कहते मिल गया परमानन्द ।
अरे भाई इसकी बजाय बाँट ख़ुशी , किसी गरीब की झोली में ।
मिलेगा आनंद पल भर में , जैसे मिले हैं बरसाने की होली में ।
अरे देखो रे आने वाली हैं सर्दियां , रख तू अपने इस धन को बचा के ।
गिफ्ट शिफ्ट और पटाखों का छोड़ रे चक्कर , किसी गरीब की झोली में कम्बल ही ला दे ।
ठान ले अगर हर आदमी , पटाखों और गिफ्टों का मोह त्यागने की ।
जगा जगाया फिर से हो गया भारत, फिर नहीं जरूरत किसी को जगाने की।
पटाखों की कुछ पल की आवाज , करती है शुद्ध हवा को बर्बाद ।
सोच कर हिलती है रूह लेखक की , तभी तो किया जगाने का आगाज ।
क्यों न सोचे हम सब कुछ नया , सही अर्थों में भरपूर बेशक पटाखों से खाली ।
हर आदमी एक कम्बल बांटे , कुछ यूँ मनाओ तुम हर बार दीवाली ।