कुछ यादें जीवन के
जिन्दगी मे आए मेरे कितने सुखों के पल
जिन्दगी मे आए मेरे कितने दुखों के पल।
बीते हुए उन पलों को कैसे मैं याद करूँ।
आए जो जीवन मे सुख-दुख के पल,
उन्हें किन शब्दो मे बयान करूँ।
कुछ लम्हें हैं जो मेरे अतीत के
सदा आँखो के सामने रहते हैं।
याद आता है जब हमें हमारा बचपन
खुशी के आँसु आँखो में
अपने आप छलक आते हैं।
माँ-पापा के छाँव के उस पल में
जीवन मे कितना था सकून,
यह पल मुझे हर घड़ी अपने
बचपन की याद दिलाता है।
भाईयों के संग लड़ना -झगड़ना ,
मन को आज भी गुदगुदाता है।
न ही चिन्ता थी किसी बात की
न फिक्र थी जमाने की।
वह पल और कोई नहीं,
वह पल याद दिलाता है
बचपन के सुहाने दिन की।
फिर याद करूँ तो याद आती है,
हमें वह विदाई का पल
जिस पल माँ-पापा और भाईयों से
हम बिछड़ गए थे।
छोड़कर उस दिन बाबुल का घर
किसी और घर के लिए चल दिए थे।
सारे पुराने रिश्ते उस दिन पीछे छुट गए थे।
उस दिन एक नए रिश्तो के संग हम बँध गए थे।
थाम पति का दामन हम उनके साथ चल दिए थे।
शादी जैसे पवित्र रिश्तों से हम जो बँध गए थे।
सबकुछ रीति-रिवाज से बँधा हुआ था।
फिर न जाने क्यों उस पल को याद कर
आज भी दिल भारी-भारी हो जाता है।
आँखो में न जाने क्यों एक दर्द के आँसु छलक आता है
इस रस्म-रिवाज पर कभी-कभी
मुझे गुस्सा भी आता है।
बेटी को इस रस्म रिवाज के नाम पर ही क्यों?
हर बार अपनी सहनशक्ति की परीक्षा देना होता है।
यह सोचकर आज भी मन भारी हो जाता है।
फिर याद करूँ तो याद आता है हमें अपना ससुराल।
जहाँ मिला था हमें बहुत आदर सत्कार।
देखकर उन सब का प्यार मन का डर निकल गया था।
नए रिश्तों को यह दिल धीरे-धीरे अपनाने लगा था।
कुछ ही दिनों मे मैं नए रिश्तों मे
अब पूरी तरह घुल मिल गई थी।
उस घर के हर एक सदस्य से रिश्ता जोड़ चुकी थी।
अब इस दिल को यह घर अपना घर लगने लगा था।
अब वह घर नही रह गया था सिर्फ मेरा ससुराल।
अब बन गया था पुरी तरह हमारा घर-संसार।
आज उस घर संसार को याद करूँ तो
एक जिम्मेदारी याद आती है।
जो हमें पत्नी, बहु और माँ के रूप मे मिला था।
उस जिम्मेदारी को याद करूँ तो याद आता है एक विश्वास
जो घर के हर एक सदस्य ने हम पर जताया था।
याद करती हूँ उस पल को तो खुशी के आसूँ आँखो मे छलक आते हैं।
हर जिम्मेदारी को हमने बखूबी निभाया है।
और आज भी उसे निभा रही हूँ।
हर रिश्तो मे प्यार बना रहे,
आज भी यही चाह रही हूँ।
अनामिका