कुछ यादें कालजयी कवि कुंवर बेचैन की
सन 2007 से 2011 के समय में कुंअर बेचैन साहब से आठ-दस मुलाकातें हुयीं थी। कथा संसार के संपादक सुरंजन जी ने उन दिनों दो विशेषांक निकाले थे। एक था वरिष्ठ साहित्यकार लीलावती बंसल जी के ऊपर और दूसरा था कुंवर बेचैन जी के ऊपर। मैं भी उपसंपादक की हैसियत से सुरंजन जी के साथ जुड़ा हुआ था। कविनगर में लीलावती बंसल जी के घर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ था। जहाँ ग़ाज़ियाबाद के समस्त साहित्यकार उपस्थित थे। आदरणीय गुरुदेव रमेश प्रसून जी व मंगल नसीम साब से भी वहीं परिचय हुआ था। वहीं अपने सामने मैंने पहली बार सब दिग्गजों को कविता, ग़ज़ल पाठ करते देखा।
सुरंजन जी के घर पर उनके सुपुत्र पंचम के जन्मदिन को मनाने विशेष अतिथि के रूप में बेचैन जी वहाँ आये थे। मैं और डाॅ अनूप सिंह जी सुरंजन जी के संपादन में आने वाली किताब ‘तीन पीढ़ियाँ: तीन कथाकार” की प्रूफ रीडिंग सुरंजन जी के घर में ही रखे कम्प्यूटर पर ही कर रहे थे। किताब में 12 प्रतिनिधि कहानियाँ थीं। 4 प्रेमचन्द जी की, 4 मोहन राकेश जी की और 4 महावीर उत्तरांचली (यानि मेरी कहानियाँ थीं।) जब बेचैन साब ने दरवाज़े पर दस्तक दी तो कम्प्यूटर बंद करके हम सब पंचम के जन्मदिन की तैयारी में व्यस्त हो गये।
किचन से भाभीजी गरमा गर्म पूरी छोले परोस रही थी। मैं भी डाॅ साहब के साथ बगल में बैठा भोजन कर रहा था। बड़े ही शांत सौम्य नेचर के थे डाॅ साब। एक मुस्कान उनके चेहरे पर हमेशा रहती थी।
जब उन पर कथा संसार का विशेषांक आया तो मुझे पता चला वो कितने ऊँचे कद के आदमी थे। उनकी कृतियों का कवि विभिन्न शेड लिए हुए है। कालजयी गीतकार व ग़ज़लकार के रूप में तो उनकी ख्याति चिरस्थायी है ही। साथ ही वह अच्छे चित्रकार भी थे। उनके चित्रों की प्रदर्शनी देखने का सौभाग्य हिन्दी भवन में हुआ था। जहाँ डाॅ साब के बनाए अनेक रेखाचित्र देखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।
करोना काल ने अनेक हीरे हमसे असमय छीन लिए हैं। आज भी उनकी रचनाओं को पढ़ता हूँ तो लगता है बेचैन साब सामने ही खड़े है।