कुछ मुक्तक…
भरे जो नेह की हाला, न प्याला वो कभी फूटे।
सिखाए जो सबक सच के, न शाला वो कभी छूटे।
खुशी जिनसे छलकती हो, जुड़ें वे तार सब मन के,
गुँथे मन-भाव हों जिसमें, न माला वो कभी टूटे।
डगर मुश्किल लगे कितनी, नहीं हटना पलट पीछे।
नजर में रख सदा मंजिल, बढ़े चलना नयन मींचे।
बहे विपरीत धारा के, वही पाता किनारा है,
न देना ध्यान दुनिया पर, भले अपनी तरफ खींचे।
उड़ानों का नहीं मतलब, गगन का नूर हो जाना।
भुलाकर दर्द अपनों के, खुशी में चूर हो जाना।
बड़े संघर्ष झेले हैं, तुम्हें काबिल बनाने में,
जिन्होंने पर दिए तुमको, उन्हीं से दूर हो जाना।
नियति ने कुछ नियत लमहे, हमें सबको नवाजे हैं।
कहीं कलरव कहीं मौना, कहीं घुटती अवाजें हैं।
कहीं दुख के विकल पल तो,कहीं नगमे खुशी के हैं,
कहीं काँधे चढ़े बच्चे, कहीं उठते जनाजे हैं।
मिली जिस काल आजादी, हुआ दिल चाक भारत का।
खुशी का पल गया करके, नयन नमनाक भारत का।
किए टुकड़े वतन के दो, हजारों जन हुए बेघर,
खिंची दीवार नफरत की, हुआ सुख खाक भारत का।
कभी थे फूल से कोमल, मगर अब शूल से लगते।
हुए जो दिल कभी इक जां, नदी के कूल से लगते।
तराने प्रेम के मेरे, मुझे ही आज छलते हैं,
बसी थी हर खुशी जिनमें, वही अब भूल से लगते।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )