कुछ मुक्तक
बेवजह सर खपाने से क्या फायदा।
उम्र अपनी छुपाने से क्या फायदा।
चेहरे पर बुढ़ापा नजर आ रहा-
केश डाई कराने से क्या फायदा।
हर घड़ी आप गैरों के’ होते रहे।
चाँद तारे मुझे देख रोते रहे।
मैं बदलती रही करवटें जाग कर,
रात भर चैन से आप सोते रहे।
भूख से हर घड़ी लोग रोते रहे।
आंसुओं से सदा स्वप्न धोते रहे।
देश बिकता रहा हाथ धनवान के-
चैन की नींद हम आप सोते रहे।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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