कुछ पूछूं तुमसे…
कुछ पूछूं तुमसे…
क्या तुमको
हंसना अच्छा नही लगता ? …ऐसा तो नही
तो हंसों न…दांत से नही, दिल से
चीज कहने पर नही
मेरी जां कहने पे
खुल के हंसो, झूम के हंसो
घर में हंसो, दुआर पे हंसो
अंदर हंसो बाहर हंसो
मंदिर में हंसो, मस्जिद में हंसो
और हाँ…
समसान और कब्रिस्तान में भी हंसना
क्यूँ कि,मुर्दा हंसना भूल जाते हैं
तुम्हारी हंसी जान फूंक देगी
मुर्दों की बस्ती में
जो खोये है उदासी की पस्ती में
खुशियां मेला लगाएगी
उनकी भी खोई हस्ती में
लम्हों में ही सही,
थोड़ी हंसी उनके दुआरे भी जाएगी
थोड़ी-थोड़ी तो ‘ग़ुमनाम ज़ीस्त’ निखर ही आएगी
थोड़ी सी हंसी से सवर ही जाएगी
…पुर्दिल