कुछ पल गम में
=कुछ पल गम में=
कुछ पल गम में,
कुछ जुड़ते तो,
कुछ टूटते हमसे
कुछ पल गम में
कुछ पल गम में
दर्द भरा ये आलम,
चुपचाप सहते है सब हम,
निकल पड़ा मैं इस जिंदगी की राहों में,
ना किया कभी आराम।।
मुझे खुशी में न देखा जा रहा है लोगों से,
तो लोगों ने दे दिया भर-भर के गम
चढ़ चढ़ के मैं इनपर हावी होता हूं ,
शायद अब भी मैं मर-मर के जीता हूं ।।
कुछ पल गम में,
कुछ जुड़ते तो,
कुछ टूटते हमसे
कुछ पल गम में
कुछ पल गम में
अपनी खुशियों में से लोगों को
बहुत दिए कर्ज़,
कई झूठे, कई दोगले, कई नासमझ
जिसे न समझ आया मेरा फर्ज़।
कुछ पलों में, मैं खुद को सिमेट लूं ,
कुछ पलों में, मैं खुद को बिखेर दूं ,
खिल्लत है मेरी ये ज़िंदगी,
खुद से मैं नजरे फेर लूं।।
कुछ पल गम में,
कुछ जुड़ते तो,
कुछ टूटते हमसे
कुछ पल गम में
कुछ पल गम में।।