कुछ पल आराम के
क्या होगा गर काम है तो,
एक पल ना आराम है तो।
क्या होगा गर भटकी दिशाएँ,
फिर भी तो हैं आशाएँ।
क्या होगा गर है बेचैनी छाई,
अँधेरों के बाद,रौशनी तो है आई।
क्या होगा गर मन इतना अशांत है,
मधुर स्मृतियाँ तो फिर भी कोमल कांत हैं।
सावन में इतनी हरियाली छाई है,
मन के एक कोने में कहीं तो ज्वाला आई है।
वक़्त ने कितनों को कर दिया ख़ामोश है,
ये सब कुछ तो बुरे वक़्त का आगोश है।
समय का क्या,वो तो चलने का नाम है,
ढूंढ़ ले तू वक़्त अपना,हर किसी के नाम है।
चाह है,उम्मीद है,बड़े ही अरमान है,
कहती है ये ज़मी,कहता आसमान है।
वक़्त ने वक़्त को बहुत कुछ सिखला दिया,
था कभी तूफ़ान तो,अब संतुलन भी आ गया।
साथ यूँ मिलता रहे,है ज़रूरी बात नहीं,
ख़ुद का साथ है बढ़कर,बस एक है ये बात सही।
मर गए,मारे गए,कितने हारे गए,
फिर भी ये जंग तो चल रहा आगाज़ है।
———-सोनी सिंह
बोकारो(झारखण्ड)