* कुछ पता चलता नहीं *
** मुक्तक **
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कुछ पता चलता नहीं अब, कौन क्यों बन मीत आया।।
भाव मन में स्वार्थ पूरित, कौन लेकर मुस्कुराया।
मुँह छुपाए फिर रहे सब, हो परीक्षा की घड़ी जब।
तब पता चलता हमें सब कौन है अपना पराया।
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प्यार के स्वप्न मन में सजाते रहे।
और मन में सहज मुस्कुराते रहे।
आ गया सामने आईना जब कभी।
क्यों भला जुल्फ मुख पर गिराते रहे।
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मौन जब से लुभाने लगा आपको।
स्नेह कोमल रिझाने लगा आपको।
अब छलकने लगे हैं कलश भाव के।
तब गगन में उड़ाने लगा आपको।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य