((((कुछ न कुछ))))
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं,
कुछ अंधेरों में कुछ उजालों में बिकते हैं.
गम का आशियाना तो ज़िन्दगी रहेगी ही,
थोड़ा खुशियों में थोड़ा ख़यालों में रुकते हैं.
बेवजह नही होती कोई वजह,कभी दर्द में कभी नशे में
शायर कुछ न कुछ तो लिखते हैं.
आँसुओं का सैलाब बनाना आसान नही होता,
कभी बिजलियां दिल पे गिरती हैं कभी खंजर दिल पे गिरते है.
महबूब को भी मनाना आसान कहाँ,
कभी हुस्न से कभी नखरों से इतराते फिरते है.
दीवाना सा होगया है अकेलेपन मे अमन,
कभी मैं तारों को गिनता हूँ कभी तारे मुझे गिनते है।