कुछ नही
में छुपाता किसी से कुछ नही
बस में बताता किसी को कुछ नही
में कर देता हु उसके काम सारे
बस जताता किसी को कुछ नही
वो देता है जमाने के दर्द मुझे
में दिखाता किसी को कुछ नही
वो सोचता है मुझे कुछ पता ही नही
पता सब है
बस में बताता किसी को कुछ नही
खुद को रश्क़-ए-क़मर? समझती है वो
मे भी आफताब? हु
बस में जलाता किसी का कुछ नही
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रश्क़-ए-क़मर=जिसकी सुंदरता देख के चाँद भी जले
आफताब=सूरज की तरह प्रकाश रखने वाला