कुछ नया लिखना है आज
हर क्षण, हर पल,हर दिन
कुछ नयापन लेकर आता है!
ठीक उसी कागज की तरह,
जो एक तरफ से कोरा है।
हम स्वतंत्र हैं उतारने को
उस कोरे कागज पर,
अपने भावों की दुनिया,
अपने उन्मुक्त विचार!
पर मैं देखता हूं..
उभरे हुए कुछ निशान!
जो उसके दूसरी तरफ
पहले से लिखे शब्दों के हैं।
ये उभरे हुए निशान
उस कोरे कागज को
फिर से पुराना बना देते हैं
उसका नयापन छुपा देते हैं।
उस कोरे कागज पर,
पुराने लिखे के डर से
नया लिखने से पहले
हम रुक जाते हैं।
जो कोरे शब्द लिखने थे,
भावों की दुनिया और,
उन्मुक्त विचार लिखने थे,
उन्हें लिखना छोड़ देते हैं।
बस यही वो क्षण होते हैं,
जब हमारे रुक जाने से
हम पीछे रह जाते हैं,
बाकी सब आगे निकल जाते हैं!
और नए शब्दों की दुनिया को,
पुराने निशानों के डर से
उस कागज पर उतार नहीं पाते हैं!
हां,कुछ नया नहीं लिख पाते हैं।
ऐसे में हम, ना जगे तो
औरों से आगे ना बढ़े तो,
माफ़ कर ना पाएंगे
इतिहास लिख ना पाएंगे।
नया अगर नहीं लिख सके तो,
अतीत के फैले जाल से,
दो कदम आगे निकलकर
वर्तमान कैसे लायेंगे?
इसीलिए मैं कहता हूं कि
नए शब्दों की स्याही से,
भावों की अमिट गहराई से,
हर हाल में लिखना है आज!
जो उभर रहे हैं चिह्न पुराने
उन पर पूरी ताकत से
अपना अस्तित्व बनाने को
कुछ नया लिखना है आज!
कुछ नया लिखना है आज!!
@करन केसरा