कुछ दोहे मनके
16- कुछ दोहे मनके
इष्ट देव में जो किसी, रखते हैं अनुराग।
भक्तिमार्ग कहते इसे, जग से रखे विराग।।1।।
सुनते हैं नित इष्ट के,सारे सुन्दर काम।
श्रवण भक्ति इसको कहें, सुनें इष्ट का नाम।।2।।
जपते प्रभुका नाम हैं , गाकर सुन्दर गीत।
कहते हैं कीर्तन इसे , वाद्य संग संगीत ।।3।।
करते मनसे जो सदा, प्रभु लीला को याद।
यही स्मरण भक्ति है , ईश्वर से फरियाद ।।4।।
सेवा प्रभुके पाँव की ,जो करते दिनरात।
पदसेवा कहते इसे ,मिले मुक्ति सौगात ।। 5।।
करते पूजन नित्य जो, करके पँचोपचार।
कहें लोग अर्चन इसे , हटता क्लेश विकार।।6।।
पूजन की विधि एक ये , वंदन कहते लोग।
स्तुति संग प्रणाम कर ,और चढ़ाते भोग।। 7।।
माने मानव स्वयं को ,ईश्वर का ही दास।
दास्य भक्ति कहते इसे, मन में नहीं विलास।।8।।
अद्भुत है ये भक्ति भी , सखा बने भगवान।
सख्यभक्ति कहते इसे, हरि की लीला जान।।9।।
भक्तिभाव में डूबकर, प्रभुवर से संवाद।
आत्मनिवेदन है यही , रहता नहीं विषाद।।10।।
सबको है देखो मिला , नहीं जगत में मीत।
किस्मत से जिसको मिला,हुई उसी की जीत।11
अब तो दुर्लभ हो गया, सखी प्रीत की रीति ।
मतलब का संसार यह, यही यहाँ की नीति।।12
राधा मीरा अब नही, नहीं राम घनश्याम।
दौलत से अब प्रेम है, लगे प्रेम का दाम।।13
प्रेम पियासा ही रहा , मिला कहीं ना मीत।
नेह मेह बरसा नहीं , नहीं प्रेम का गीत ।। 14
दिल में आकर के बसे , मनमोहन घनश्याम।
रटता है दिन रात मन, बस कान्हा का नाम।15
आँखों में काजल लगा, बालों में है फूल।
कान्हामय सबकुछ हुआ,गयी सभी कुछ भूल।16।।
दिवस रैन कब चैन है, बस प्रियतम की आस।
आवन को वे कहि गये, गये बीत मधु मास।।17।
दो नैनों के नेह में , भूल गयी संसार।
मिलने की ही आस में, बीत गये दिन चार।।18।।
मन ही मन में खिल रही, सुन प्रियतम की बात।
बातें कब पूरी हुईं , बीत गई सब रात ।।19।।
मुस्काती सी डोलती , नैना दिखें अधीर।
मन ही मन कुछ तौलती, कहे न कोई पीर।।20।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली