** कुछ तो है **
ख़ुशी न सही ज़िन्दगी में
ग़म तो है।
कुछ न होने से बेहतर है के
कुछ तो है।
भौतिक चीजों की मुझे अब
ज़रूरत नही।
मेरे अंदर का एक महल
धूमिल तो है।
कुछ न होने से बेहतर है के
कुछ तो है।
नही है मेरे पास खिलती
कलियों की हँसी।
पर मेरे पास मेरा रोता
दिल तो है।
कुछ न होने से बेहतर है के
कुछ तो है।
भीड़ नही है मेरे चारों ओर
तो क्या हुआ।
मेरे अंदर सिसकती आह की इक़
महफ़िल तो है।
कुछ न होने से बेहतर है के
कुछ तो है।
तुम अमीर हो मकान,कपड़ों
और पैसों से।
पर मेरी ज़िंदगी मे भी एक
खलिल तो है।
कुछ न होने से बेहतर है के
कुछ तो है।
कवि-वि के विराज
कविता-कुछ तो है