कुछ तो मजबूरी रही होगी…
कुछ तो मजबूरी रही होगी, कोई प्रतिबंध रहा होगा ।
कैद बुलबुल के निकलने का ,हर रास्ता बंद रहा होगा ।।
यूं ही न कातिल , हुई होंगी वो हवाएं।
मौसम के साथ मातम का, अनुबंध रहा होगा ।।
नाकाबिल छोड़ा है ,जिस गलीचे को महफिल ने ।
कम्बख्त पर टाट का ,पैबंद रहा होगा ।।
क्या मजाल कि मौत भी, मार जाती छुरा मेरी पीठ पर ।
चौकसी में ही कोई , जयचंद रहा होगा ।।
जब फाड़ा होगा वहशी सा, बेटे ने मां का आंचल।।
दिल भी दुश्मन का, दंग रहा होगा ।।
चौक में सिंकी राजनीति की रोटी,घर चूल्हा न जला ।
शायद शहर मेरा, बंद रहा होगा ।।