कुछ तो कमी रही होगी
दिल की धड़कन भी सिसक कर थमी रही होगी
हिज्र की रात बड़ी मातमी रही होगी
वो इमारत जो अचानक जमीं पे लेट गई
उसकी बुनियाद में शायद नमी रही होगी
अश्क की धार पिघलती नहीं यूँ आँखों से
याद कुछ बर्फ में ढलकर जमी रही होगी
यूँ नहीं जाता छोड़कर कभी हबीब अपना
तुम्हारे प्यार में कुछ तो कमी रही होगी
तोड़ दी उसने कसम तो नया है क्या ‘संजय’
बात उसकी भी यूँ ही मौसमी रही होगी