कुछ तो उसके ज़ेहन में
कुछ तो उसके ज़ेहन में पलता है।
मेरा होना उसे जो खलता है।।
उगते सूरज की बात क्या करना।
वक़्त के साथ वो भी ढलता है।।
बे’यकीनी सी उसकी फ़ितरत है।
मौसमों सा जो दिल बदलता है।।
कोशिशे करके देख लो सारी।
ज़ोर क़िस्मत पे थोड़ी चलता है।।
कुछ तो उसके ज़ेहन में पलता है।
मेरा होना उसे जो ख़लता है।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद