“कुछ तेरे कुछ मेरे ख्वाब हैं*
“कुछ तेरे कुछ मेरे ख्वाब हैं*
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कुछ तेरे कुछ मेरे ख्वाब है।
हमारे खत उनके जवाब हैं।
दिल के आंगन में हैं खिलते,
गिनती में जो बेहिसाब हैं।
हीरे मोती नगीनें सारे हैं फीके,
तेरे मेरे सांझे सपने किताब है।
फूलों से सजाए और सवारें है,
गगन में चमकते आफताब है।
मन गद गद भर जब मनसीरत,
चांद तारों से घिरे महताब हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)