कुछ तेरी-कुछ मेरी।
क्यों ना करूँ मैं माफ़ तुझे,
क्यों करूँ सम्वाद में देरी,
ग़लती तो हो ही जाती है दोस्त,
कहीं कुछ तेरी तो कहीं कुछ मेरी,
होंगे जवां दौर वो फिर से,
फिर बनेंगी यादें सुनहरी,
फिर होंगी कही-अनकही सी बातें,
कहीं कुछ तेरी तो कहीं कुछ मेरी,
घटेगा फ़ासला कुछ तेरा तो,
कम होगी दूरी कुछ मेरी,
होगी पूरी जो कहानी थी अधूरी,
कहीं कुछ तेरी तो कहीं कुछ मेरी।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।