कुछ जज़्बात।
कुछ जज़्बात ऐसे भी हैं जो,
लफ्ज़ों में किसी को दिखा नहीं सकते,
ऐसा कुछ भी किसी से कहिए मत,
जिसे आप निभा नहीं सकते,
आपका साथ मुझसे,
कुछ ऐसे है छूटा,
बेवजह ही मानो,
कोई मुझसे है रुठा,
अच्छे-ख़ासे जुड़े थे मगर,
अब छिपे हैं जाने कहां पे जनाब
कोई सवाल मैं पूछूं कैसे,
लाऊं कहाँ से कोई मैं जवाब,
मुरझाए गुलशन फिर खिलते हैं ,
जो बिछड़ जाएं वो फिर मिलते हैं,
अब आपको भला “अंबर” ढूंढे कैसे,
कि जो बदल गए वो कहाँ मिलते हैं।
-अंबर श्रीवास्तव