कुछ गीला लिखा नहीं है
कागज़ पर कुछ गीला लिखा नहीं है।
शायद कोई दर्द नया मिला नहीं है।
स्याही भी बिखर जाती थी शब्दों की
पर ज़ख्म कभी हमने वो सिला नहीं है।
मन के किसी कौने में है जमा वो शब्द
जिनसे ऐ ज़िन्दगी अब कोई गिला नहीं है।
तब भी मुस्कुरा के झेला था अब भी झेलेंगे
तुम्हारी बातों का असर कब दिखा नहीं है।।।
कामनी गुप्ता ***