कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
कर्त्तव्य रिश्ते का कुछ इस कदर निभाना,
कि प्रकाश के उस दरिया को, लाँघ कर चले आना।
सरल नहीं है, इस अविश्वनीय दूरी को मिटाना,
पर त्याग आऊंगी ये संसार मैं, थोड़ा तुम भी ईश्वर से लड़ आना।
असंभव हीं तो है, बहुमूल्य स्मृतियों को भूलना,
तो कुछ बातें मैं ले आउंगी, कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
विखंडित हुई लहरों का भी, सागर हीं है अंतिम ठिकाना,
बनकर तारा टूटूँगी मैं भी, क्षितिज बन तुम बाहें फैलाना।
फैले इस अन्धकार को, भोर से कभी तो होगा मिलाना,
तो परछाईं बन मैं आउंगी, थोड़ा सा सूरज तुम ले आना।
किस्मत ने भले हीं लिख दिया, रूह और काया के विरह का फ़साना,
पर उम्मीद की मोतियाँ मैं लाऊंगी, धागे जन्मों के तुम ले आना।
निरंतर यात्रा से समय थका, उचित है अब धैर्य का टूट जाना,
किस्तों में जी लिया जीवन ये, अब तो मृत्यु में मुझे सम्पूर्ण कर जाना।