“कुछ खत मुहब्बत के”
कुछ खत मुहब्बत के याद आने लगे हैं
वो प्यार के गीत फिर गुनगुनाने लगे हैं।
मन को समझाता हूं मगर समझता नहीं
दिल में तस्वीर बनकर वो छाने लगे है।
एहसास कितना अजीब है किससे कहूं
वो नींद में भी आकर मुस्कराने लगे है।
बासंती भी खुशबू महकने लगी मानो
वह जो नजरो से नजरें मिलाने लगे हैं।
कट रही जिंदगी नाम से अब उनके
लोग किस्सा कुछ ऐसा सुनाने लगे है।
गम की घटाएँ छट गई प्रेम की बहार में
अब जो अपना समझकर बुलाने लगे हैं।
ये दुनिया प्रेम का समुंदर समझो प्रशांत
हम भी अब उसमें गोता लगाने लगे है
प्रशांत शर्मा खैमरिया “सरल”
माल्हनवाड़ा नरसिंहपुर
मो.9009595797