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29 Dec 2017 · 1 min read

कुछ कहने के लिए

बक़्त है नजाकत का कुछ कहने के लिए ।
कुछ खंडहर बचे हैं ,अभी ढहने के लिए।।

खिर रहे हैं वालू की तरह यारों दम रहा नहीं
मजबूर हो रहे हैं अब् आंसू बहने के लिए।।

आवाज़ आती है कानों में धीरे से जरा बताना
कितना समय और बचा है हमें सहने के लिए।।

जवाव देना मुमकिन है कि अभी से घबरा गए
जिंदगी पड़ी है तंमाम यार यहां रहने के लिए।।

हमने तो जनम से झेला है “साहब”तुम्हें बताएं
कुछ और वाकी है वो आग हमें दहने के लिए।।

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