कुछ कलयुगी मुक्तक –आर के रस्तोगी
काश ! मैं तुम्हारा मोबाइल होता
तुम्हारे कानो से चिपका होता
तुम अपने दिल की बात कहती
मैं अपने दिल की बात कहता
काश ! तुम मेरे मोबाइल होते
भले ही मेरे कानो से चिपके होते
पर जब मैं बॉय फ्रेंड से बात करती
तुम्हारे दिल में कडवाहट होती
काश ! मै तुम्हारा दीपक होता
तुम मेरी तेल बाति होती
मै सारी रात जलता रहता
तुमको प्रकाश देता रहता
काश ! तुम मेरे दीपक होते
भले ही तुम्हारी तेल बाति होती
जब तेल तुम्हारा खत्म हो जाता
सुबह तुम्हे कूड़े में फैक आती
काश ! तुम्हार गणेश होता
घर में तुम्हारे पूजा जाता
रोज तुम्हारे लडडू खाता
खूब मौज मस्ती मनाता
काश ! तुम मेरे गणेश होते
भले ही तुम रोज पूजे जाते
और खूब मौज मस्ती मनाते
पर हर वर्ष तुम्हारा विसर्जन करती
काश ! मैं तुम्हारा राम होता
कलयुग में मैं पैदा होता
तुम सीता सी पत्नि होती
कितनी अच्छी ये बात होती
काश ! तुम कलयुग मै पैदा होते
मै सीता सी सावित्री न होती
तुम अकेले बन बन में भटकते
मैं अकेले ही मौज मस्ती लेती
आर के रस्तोगी