कुछ कमी हम में ही थी
कुछ कमी हम में ही थी, जो समझ न पाए दुनिया को, दुनियादारी को,चेहरों के पीछे छुपे सफेद चेहरों को,
पीलापन लिए गंदमी रंगों को, दिलों और दिमागों की गंदगी को, शून्यता में डूबी आँखों को, खाली हाथों की कंपन को,
डगमगाते कदमों की फिसलन को, असमय सफेद हुए बालों को, मेकअप से दाग छुपाते गालों को,हम ही समझ ना पाए वो राज़, जो छिपता है किसी की ओट लेकर, निकलता है जब स्याह रंग छा जाता है, दिखाता है असलियत अपने वजूद की, अपने होने की,
सब में, हम सब में………..