कुछ कदम मैं चलूँ, कुछ दूरियां तुम मिटा देना,
कुछ कदम मैं चलूँ, कुछ दूरियां तुम मिटा देना,
ख़ामोशियों भरी जो तस्वीर है, उसे शब्दों से सजा देना।
अधूरी ख़्वाहिशें जो, बेहोशी की चादर तले सोई हैं,
नए कुछ ख़्वाब दिखाकर, उसे होश की नयी वज़ह देना।
सदियों से ठहरी ठण्ड ने, इस धरा को ठिठुरा कर रखा है,
तुम सूरज की कुछ किरणें लाकर, मेरे क्षितिज पर बिखरा देना।
मन्नतों का एक दीया जला, जो मंदिर से रूठा बैठा है,
तुम तोड़कर ज़िद उसकी, उसे ईश्वर से मिला देना।
वो डूबती सी एक कश्ती, जो किनारों की कभी हुई नहीं,
तुम रेत के एक घरौंदे से, उसकी डूबती आस जगा देना।
वो दरख़्त जिसका पतझड़, उससे बिछड़ने को राजी नहीं,
तुम मौसम बहारों का लाकर, उसके ग़लीचे को रिझा देना।
एक जंगल है अंधियारों भरा, जिससे रौशनी भी कतराती है,
तुम जुगनुओं की बरात से, वहाँ पगडंडियों को सजा देना।
मुस्कुराहटें हैं ऐसी जो, आँखों तक पहुँचती नहीं,
उन आँखों में रुके आंसुओं की, तुम एक बरसात करा देना।
एक नसीब है ऐसा जिसने, सफर का बना रखा है,
कोई घर मुझको भी बुलाये, ऐसे तुम वो हालात बना देना।
कुछ कदम मैं चलूँ, कुछ दूरियां तुम मिटा देना,
ख़ामोशियों भरी जो तस्वीर है, उसे शब्दों से सजा देना।