” कुछ और नजर ना आता है “
“कुछ और नजर ना आता है…!!!”
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सुबह से लेकर शाम तलक
तेरी यादों का मंजर रहता है,
क्या बोलूं और किससे कहूं
दिल मेरा धड़कता रहता है।
इश्क कहूं या जुनून इसे
तेरे ख्यालों में हरदम डूबा रहता हूं,
दिन का चैन पहले ही किसे था
रातों को भी बेताब सा रहता हूं।
शाम का धुंधलका अकसर
यादें तेरी ले आता है,
कुछ रिश्ता तो है तेरा मेरा
एहसास मुझे दिलाता है।
रातों का आलम मत पूछो
तेरी यादों के मंजर बिखरे हैं,
इन मंजर को संजोने में
अब जीवन गुजरने वाला है।
आई हो दुनिया में जबसे
तुम बन कर मेरी हमदम,
इक तेरे सिवा इस दुनिया में
कुछ और नजर ना आता है…
कुछ और नजर ना आता है…
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)