कुछ ऐसे होते हैं माता-पिता
खूब दुआओं से , सँवारा उसने मुझे ।
अक़्स अपना , बनाया उसने मुझे ।
दरिया ख़ामोशी से , बहता था मैं ,
तूफ़ां समंदर, बनाया उसने मुझे ।
उकेरकर जमीं , जज़्बात की मेरी ,
फूल हसरत सा , उगाया उसने मुझे ।
नाकाफ़ी थी जमीं मेरी,निगह में उसकी ,
लो आसमाँ पे , बिठाया उसने मुझे ।
जीत लूँगा दुनियाँ को ,तेरे वास्ते मैं ,
नम आँखों से ,हौंसला दिलाया उसने मुझे ।
यूँ तो खुद खुदा न था ,”निश्चल” वो कभी ,
यूँ खुदा का ,अहसास कराया उसने मुझे ।
…… विवेक दुबे”निश्चल”@….