कुछ अश्आर…
न मंदिर में न मस्जिद में, न काबा में न काशी में,
खुदा से है अगर मिलना, मिलो माँ बाप से साहिब।।
करो मत जुर्म तुम ऐसे, पड़े नजरें झुकानी जो,
हकीकत है झुकी नजरें, कि माँ पहचान लेती है।।
मुनासिब हो अगर मिलना, खुदा के पास जाकर के
चली आना, चली आना, मे’री माँ तुम चली आना।
खुदा भी साथ देता है, अगर माँ बाप हैं यारो,
बिना माँ बाप के जीना, मिलो आकर “परिंदे” से।।
कहा करता हूँ’ अक्सर मैं, मुहब्बत मर चुकी है अब,
मुहब्बत है अगर करनी, करो फिर हीर राँझे सी।।
अदावत में मुहब्बत है, तो’ हाक़िम हो जमाने के,
मुहब्बत में अदावत है, तो’ काफिर हो यक़ीनन तुम।।
पंकज शर्मा “परिंदा”