कुछ अलग लिखते हैं। ।।।
कुछ अलग लिखते हैं। ।।।
आज यूं ही मन मे ख़याल आया कि चलो कुछ अलग लिखते है,
फिर सोचा कि सब कुछ तो लिखा जा चुका है और आज कल तो सभी लिखते है।
कोई सच लिखता है आधा, तो कुछ पूरा झूठ लिखते हैं,
चलो आज लिखें चाँद को बेफवा, महबूब तो सब लिखते हैं।
क्या लिखी होगी सूरज की तपिश भी किसी ने, सर्दियों की धूप
को आगोश तो सभी लिखते है।
राम सीता के प्रेम की दास्तान लिख के देखें क्या, वनवास और
अग्नि परीक्षा तो सब लिखते हैं।
क्या बीतती होगी रुक्मणी और अयन के दिल पर, जब लोग सदियों तक राधा को कृष्ण के संग लिखते है।
फिर मैने सोचा कागज़ खाली रहने दूँ और बना दूँ शान्ति पताका इसे, क्यों की क्रांति तो इंस्टाग्राम से लेकर अखबार तक सब लिखते हैं। और मुझे लिखनी है एक दिन आवाम की हकीकत, क्योंकि
सरकार को नाकाम तो सब लिखते हैं।