*कुछ अनुभूतियाँ*
[1]
अपने अपनों में भेद यहां,
पर ना किंचित खेद किसी को l
खुद के घर में आग लगी है,
पर ना आए वेद किसी को ll
[2]
उजड़ा है बागवान जबसे,
गुलजार नहीं जीवन तबसे l
हमें शिकायत अपनों से है,
ना शिकवा जग से ना रब से ll
[3]
पढ़ ली हमनें दुनिया दारी,
खुद को पढ़ना भूल गए है l
क्यों ठहरे हैं हम अतीत में,
नित होते अध्याय नए है ll
[4]
नित करते जो मीठी बातें,
वो किसी का होता यार नहीं l
बंधन से उन्मुक्त अगर हो,
तो समझों साची प्यार नहीं ll
[5]
हंसना, रोना, खोना,पाना,
जीवन की यहीं कहानी है l
सबके बंधे हुए है हाथ,
किसकी चलती मनमानी है ll
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल