कुछ अनकही
दिल कहना बहुत कुछ चाहता
पर कुछ बातें अनकही रह जाती हैं।
कभी मिले थे ज़ख्म जो मन को
रंजो -गम की घोर तपिश।
धीरे धीरे बीते लम्हें
मरहम का लेप लगाती हैं।
कितने गिले- शिकवे थे,
और जुदाई लंबी सी।
निपट चांदनी रात अकेली,
चांद सितारों से साझा कर
मन को अपने बहलाती है।
सूख गए आंसू के धारे
पर, नासूर अभी भी बाकी है।
शबनम से भीगी रातें
मन के कोने को सहलाती है।
कितनी खट्टी मीठी यादें
और वह कितनी फरियादें।
हो गई तिरोहित वो कब की
सागर से गहरे मन में
बेसुध बोझिल तरंगे
यादों को विचलित कर जाती है।
ख़्वाबों और ख्यालों में
जागे थे सपने सजीले से,
साथ नहीं थे जब तुम मेरे
इस दुनिया में रंग रंगीले थे।
कोरे एहसासों से हो घायल
बिरहाग्नि बहुत तड़पाती है।
वक्त कभी ना बांधा है
ना और कभी बंध पाएगा
समय का घूमता गोल पहिया
अरमानों को बहा ले जाएगा।
हम हैं ,सनम सब साथ हैं अपने
रश्मियां लौट नहीं फिर पाती है।
जो था मन में वो —
हो गया अतीत
पर कुछ बातें अनकही रह जाती है ।
सूनेपन में —
कभी-कभी वह चिंगारी दहलाती है।।