कुछ अच्छा हो जाए
वक्त से जो न तू सबक ले,
जो न करे गुरूर तू नष्ट।
अहंकार का नशा दिखा कर,
हो रहा है तू क्यों पथ-भ्रष्ट।
जो तू आज कर रहा प्राणी,
खुशी है कुछ पल की,हे धृष्ट
इनकी परिणति कैसी होगी,
तुझे न है आभास तक दुष्ट।
जैसी करनी वैसी भरनी,
बुरे कर्म का फल है कष्ट।
ऊपर वाला न्याय है करता,
न बचता कोई हे निकृष्ट।
आज नहीं तो कल तो होगा,
तेरा यह खेल नष्ट-भ्रष्ट।
इसीलिये कहते हैं प्राणी,
कर ले कुछ तो उत्कृष्ट।
कुछ-कुछ छवि सुधार ले अपनी,
कि ऊपर वाला भी हो आकृष्ट।
—-रंजना माथुर दिनांक 06/03/2017
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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