कुकुभ छंद
कुकुभ छंद –
30 मात्राएं,16-14 पर यति , चरणांत 2 गुरु ।
बिखरी है क्षितिज में लालिमा, रवि मरीचि अम्बर छाई।
उठ कर सुमिरन कर ले प्रभु का,भोर सुहानी है आई।।
कर्म पोटली ही जाएगी अंत तेरे संग प्राणी।
दया हृदय में तुम सदा रखो बोलिए मधुर तुम वाणी ।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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