कुंडलिया
कुंडलिया
बलिहारी बृज धाम ये, आये हैं गोपाल।
झूम उठे सब लोग हैं, माता हुई निहाल।
माता हुई निहाल, खुशी छलकी है जाती।
निरख निरख के रूप,अमित सुख वे हैं पाती।
देख रहे सब देव, रूप धरकर प्रतिहारी।
जाता सन्त समाज, आज प्रभु पर बलिहारी।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली