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27 Feb 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

काया की माया मिटी, मिटे देह अनुबंध ।
सूक्ष्म अकेला ही चला ,तोड़ धरा सम्बंध ।
तोड़ धरा सम्बंध , छोड़ यादों की पाती ।
हर साथी को याद , तेरे करम की आती ।
कह ‘सरना’ कविराय, अजब उस रब की माया ।
माटी में हुई लीन, आज माटी की काया ।

सुशील सरना /27-2-24

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