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5 Jun 2022 · 1 min read

कुंडलिया

निर्झर-सा गतिमान ही, होता उत्तम छन्द।
पाठक गण के चित्त में,भर देता आनंद ।
भर देता आनंद ,सृजन में हो उत्तमता।
छटता है तिमिरांध,उमड़ती है चेतनता ।
नव- रस की रसधार ,हृदय को जाती धोकर।
झरता झर-झर सतत,जभी साहित्यिक-निर्झर।

(मौलिक व स्वरचित)

©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’

1 Like · 1 Comment · 233 Views
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