कुंडलिया (मैल सब मिट जाते है)
कुंडलिया (मैल सब मिट जाते है)
मिट जाते हैं मैल सब, होता तन का मेल।
लगता जैसे चल पड़ी, खुशियों वाली रेल।।
खुशियों वाली रेल, भरे खुशियों से झोली।
बढ़ जाता है प्रेम, पर्व जब आता होली।।
कह बाबा कविराय, रसिक कुछ पिट जाते है।
रहता फिर भी प्रेम, मैल सब मिट जाते है।।
©दुष्यंत ‘बाबा’
आप सभी को रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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