कुंडलिया छंद
सागर सम बनकर रहें ,कभी न बदलें रूप।
सुखा न पाए उदधि जल,दिनकर तीखी धूप।
दिनकर तीखी धूप, मात्र तिनके झुलसाए।
दुख में रहें प्रसन्न ,पास गम कभी न आए।
करें काम नित नेक ,भरी रहती सुख गागर।
सदा बनाता स्वार्थ, सभी को खारा सागर।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय