कुंडलिया छंद
चलता रहता आदमी,हरदम ऐसी चाल।
मानो उसने कर लिया,बस में अपने काल।
बस में अपने काल ,नहीं कोई कर पाया।
नहीं सर्वदा साथ,किसी का देती काया।
भूल चिरंतन सत्य,स्वयं को रहता छलता।
उल्टी-टेढ़ी चाल ,सदा मानव है चलता।।1
सबका अपना ज्ञान है,सबका अपना पंथ।
दक्षिण एवं वाम में, मत बाँटो सद्ग्रंथ।
मत बाँटो सद्ग्रंथ ,निवेदन इतना मानो।
करो हमेशा प्यार ,परस्पर रार न ठानो।
इनमें जीवन सार,दिखाएँ पथ ये रब का।
सद्ग्रंथों की सीख ,भला करती है सबका।।2