#कुंडलिया//मानव के दो रूप
हारो कभी न हौंसला , चलना सीना तान।
होगी सदैव जीत ही , चले अगर तुम ठान।।
चले अगर तुम ठान , बढ़ेगी हिम्मत पक्की।
चले पवन ज्यों तेज़ , मान की त्यों ही चक्की।
सुन प्रीतम की बात , सदा निर्बलता मारो।
रहता दुख दिन चार , कभी मत इससे हारो।
मानव हैं फ़नकार सब , डाकू गुंडे चोर।
कला सभी हैं जानते , अपना-अपना छोर।।
अपना-अपना छोर , कहो चाहे गुण-अवगुण।
नहीं किसी के मीत , स्वयं सुख देखे हर क्षण।
सुन प्रीतम की बात , कर्म करें देव दानव।
दोनों ही हैं रूप , बुरा या अच्छा मानव।
–आर.एस.प्रीतम
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