#दोहे – प्रकृति पर आधारित
वन-तरु मानव मीत हैं , पहले अंतिम शेष।
साँसों के आधार ये , मानो इन्हें विशेष।।
प्रकृति संतुलन राखिए , हस्तक्षेप को भूल।
घटा-बढ़ा तो भोगिये , रखे स्वयं अनुकूल।।
वन होंगे वीरान तो , मानव भी वीरान।
स्वास्थ्य संपदा चाहिए , इनका कर उत्थान।।
वृक्षारोपण कीजिए , मानव उत्सव संग।
मंगल तरु जीवन यहाँ , हितकारी हर अंग।।
सत्संगति वरदान है , आए हृदय न पाप।
मगर कुसंगति पतन है , जीवन का अभिशाप।।
अनुशासन से शोहरत , मिले मान सम्मान।
छंदबद्ध कविता मधुर , भाए इसकी तान।।
बाधाएँ अवरोध कर , ताक़त से लाचार।
चट्टानें ज्यों तोड़कर , निर्झर हो शृंगार।।
#आर.एस.’प्रीतम’