कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शब्द-कोमल
राधा मोहन प्रीत के,सुंदर कोमल भाव।
निसदिन दर्शन चाहते, साधककरते चाव।।
साधक करते चाव,कृष्ण की मुरली गाती।
पायल बजती पाँव, निधिवन गोपी आती।
सीमा कहती आज, प्रेम नहिँ बनता बाधा।
जोगी बनते कृष्ण, बने है जोगन राधा।।
होता कोमल मन बड़ा, बोलो मीठे बोल।
कड़वा क्यों है बोलना, शब्दों को लो तोल।।
शब्दों को लो तोल, घाव ये गहरा करते।
बोली का है मोल, देख सब रिश्ते बनते।।
सीमा कर्कश स्वर ,चैन है मन का खोता।
घायल होती देह, दर्द ही हरदम होता।।
सीमा शर्मा “अंशु”