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4 Feb 2024 · 1 min read

कुंडलियां

नैन समंदर हो ग‌ए, भर के खारी बूंद।
प्रिय प्रियतम के प्रेम पर, विषमय लगी फफूंद।।

विषमय लगी फफूंद, मार्ग में स्याह घनेरे।
पथ में सिमटे फूल, शूल मग को थे घेरे।।

हारा उर थक प्रीति, घाव में पाँव बढ़ा कर।
जतन हुए बेकार, बने तब नैन समंदर।।

संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)

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