कुंडलियां
कविता आहें भर रही , वाणी पर प्रतिबंध ।
गूंगे रहकर लिख रहे , भावों के अनुबंध।।
भावों के अनुबंध , समय की है बलिहारी ।
ठकुर सुहाती कहो , अन्यथा संकट भारी ।
कह पाण्डे कविराय , चरण चुंबन जो करता
सम्मानों से सज्ज , दिखे बस उसकी कविता ।।
सतीश पाण्डेय