की है निगाहे – नाज़ ने दिल पे हया की चोट
की है निगाहे – नाज़ ने दिल पे हया की चोट
ये इब्तदा की चोट है, या इन्तेहा की चोट
वो इस अदा से कर गये इज़हारे – दिल लगी
दिल पाश-पाश कर गयी लफ़्ज़े वफ़ा की चोट
महफ़िल में उनके आते ही इक नूर छा गया
लेकिन दिये को खा गयी हुस्ने ज़िया की चोट
हर लम्हा दर्दे – दिल को उन्हीं की है जुस्तजू
देके गये हैं दिल पे जो नाज़ो – अदा की चोट
सहने – चमन में कह दो न आँचल उड़ाएं वो
मजरूह कर रही है गुलों को हवा की चोट
मेरी लहद से जब भी गुज़रना , दबा के पाँव
बे – चैन कर न दे मुझे आवाज़े – पा की चोट
होंगे तुम्हारे, शह्र में आसी बहुत हरीफ़
करते हो अपने शेर से तुम जो बला को चोट
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सरफ़राज़ अहमद आसी