कीर्ति छन्द
कीर्ति छन्द, प्रथम प्रयास
112 112 1122
प्रभु कष्ट हरो सब मेरा।
मुझको दुःख ने अब घेरा।
मझधार फसी जब नैया।
तुम हो प्रभु नाव खिवैया।
मुक्तक
पथ पे हम यूँ बिछड़े हैं।
दिल के अरमां उजड़े है।
जब साथ दिया न किसी ने।
अपने तब साथ खड़े हैं।
अभिनव मिश्र